जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत | Jean Piaget Cognitive Development Theory

जीन पियाजे (Jean Piaget) एक स्विस (स्विट्जरलैंड) विकासशास्त्री थे जिन्होंने बच्चों के मानसिक विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जन्म 9 अगस्त 1896 को हुआ था और उनकी मृत्यु 16 सितंबर 1980 को हुई थी।

जीन पियाजे ने बच्चों के मानसिक विकास को चार चरणों में विभाजित किया था:

  1. संवेदी पेशीय अवस्था/ इंद्रिय जनित अवस्था सेंसोरीमोटर स्थिति (Sensorimotor Stage): 0  से 2 वर्ष
    इस चरण में, जो शिशु पैदा होता है, वह अपने पर्यावरण को इंद्रियों के माध्यम से अध्ययन करता है और अपने हस्तक्षेपों द्वारा जगह के साथ संवेदनशील होता है।
  2. पूर्व सक्रियात्मक अवस्था / प्रीऑपरेशनल स्थिति (Preoperational Stage): इस चरण में, जो बच्चे लगभग 2 से 7 वर्ष की आयु में होते हैं, उनमें भाषा की समझ में वृद्धि होती है, लेकिन वे अभी भी अपर्याप्त रूप से विचार करने में असमर्थ होते हैं।
  3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था / कन्क्रीट ऑपरेशनल स्थिति (Concrete Operational Stage): इस चरण में (लगभग 7 से 11 वर्ष के बीच), बच्चे अब लॉजिक और सांख्यिकीय ज्ञान का विकास करने में सक्षम होते हैं
  4. अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था / फॉर्मल ऑपरेशनल स्थिति (Formal Operational Stage): 11 वर्ष के बाद इस चरण में (आधुनिक किशोरावस्था से बाद)

जीन पियाजे ने अपने अनुसंधान के माध्यम से यह प्रस्तुत किया कि बच्चों का मानसिक विकास चरणबद्ध रूप से होता है और वे नए ज्ञान को स्वीकार करने और सीखने के लिए सीधे संबंधित उम्र के स्तरों पर होते हैं।

विकास के सिद्धांत पर तो सबसे पहली चीज जो समझनी है, वह यह है कि जीन पियाजे साहब जो वे कहां से बिलॉन्ग करते, स्विट्जरलैंड के हैं। उन्होंने एक बहुत मजेदार बात कही, “जैसे-जैसे आप बायोलॉजिकली मेच्योर होते जाते हो, जैसे-जैसे परिपक्व होते जाते हो, आपकी उम्र बढ़ती है, तो जाहिर सी बात है कि आपको एक्सपीरियंस भी होते हैं और उसी हिसाब से बच्चों के कॉन्सेप्ट भी बनने लगते हैं। हर चीज के बारे में बहुत अच्छी बात कही। फिर से समझ लें कि जैसे-जैसे आप मेच्योर होते जाते हो, बायोलॉजिकल वैसे-वैसे आपको बहुत सारे अनुभव होते हैं और हर चीज के लिए आपके कॉन्सेप्ट बनने लगते हैं। बच्चों के लिए उन्होंने एक स्टेटमेंट दिया था कि बच्चे नन्हे वैज्ञानिक हैं और अपने सिद्धांतों की रचना खुद करते हैं, सक्रिय रूप से सीखते हैं। यानी, बच्चा कभी भी ऐसा नहीं हो सकता कि आईएनएक्टिव वे में सीखे। अगर बच्चा सक्रिय होगा, एक्टिव होगा, उसे चीज में इंवॉल्व होगा, तो जरूर ही वह बच्चा सीखेगा। ठीक साहब, उसके बाद नेक्स्ट चीज पर ध्यान देते हैं, क्या कहा उन्होंने? कहा गया था यह क्वेश्चन आपसे, बच्चों की थिंकिंग, यानी बच्चों की सोच, जो है वह एडल्ट से अलग होती है। किस्म टाइप में, प्रकार अलग होती है, टाइप में अलग होती है, बच्चों की सोच किस बड़ों से अलग होती है, बच्चों की सोच बड़ों से टाइप में अलग होती है। यह एक क्वेश्चन आपका आया हुआ था, कि बच्चों की सोच बड़ों से टाइप में अलग होती है, लेकिन मात्रा में अलग नहीं होती, ऐसा नहीं होता कि बच्चे की सोच जो है, वह आप कहें कि नहीं, बच्चे की सोच क्वांटिटी में दो किलो की होती है, और बड़े की सूचना बड़े आदमी की क्वांटिटी में, अगर देखा जाए, तो 10 किलो की सोच होती है, नहीं ना, तो बच्चे और बड़े की सोच में अंतर सोचने के तरीके में अंतर होता है।

तो बच्चों की थिंकिंग, बच्चों का सोचना एडल्ट से बड़ों से टाइप में प्रकार में अलग होता है, ना की मात्रा में। ये क्वेश्चन स्टेटमेंट इसलिए डाला गया है क्योंकि यह क्वेश्चन आया हुआ था। अब समझें, इन्होंने कहा की सीखना, सीखना दो चीजें इसके अंदर आती हैं। जब आप चीज सीखते हैं, तो यही चीज होती हैं:

  1. ऑर्गेनाइजेशन संगठन: पूरी जिंदगी आप कुछ ना कुछ सीखेंगे जी। और जो भी कुछ सीखोगे, उसे अपने पहले के अनुभव में जोड़ते जाओगे। इस तरीके से, आपको लाइफ में बहुत सारे एक्सपीरियंस का होगा। संगठन होगा, यानी आपके पास बहुत सारे अनुभवों का ग्रुप होगा। ठीक मेरी बात समझ रहे हैं, तो संगठन लाइफ में कुछ ना कुछ हमेशा हम सीखेंगे, और उसे जोड़ते चलेंगे।
  2. अनुकूलन: और कई बार ऐसा भी आएगा की आप जो सीखोगे, उसमें आपको कुछ गड़बड़ी नजर ए रही होगी, की यह जो मैंने सिखा ये सीधे-सीधे पता नहीं क्यों मेरी पहले के ज्ञान में फिट नहीं बैठ का रहा। तो उसे कहते हैं अनुकूलन, यानी ऐसी सिचुएशन में जब आप देखोगे की आपके पहले के ज्ञान में फिट नहीं बैठ का रहा, तो आप अपने वातावरण को वातावरण के अकॉर्डिंग बदलो जी। अपने आप में वातावरण के अकॉर्डिंग चेंज करोगे।

वैसे भी, लर्निंग से आप अपने आप में वातावरण के अकॉर्डिंग चेंज ही करते हो, क्योंकि भाई, आपने सिख लिया लर्निंग। कारी आपने सिखा, कि भैया, ये कॉर्पोरेट सेक्टर है। इसके वातावरण में ढलने के लिए, मुझे इनकी तरह यह चीज सिख लेनी होंगी।

कुल लघु, ताकि मैं इनके साथ मंगल हो सकूं। ठीक है या आई हैव डन? आई हैव डैन?

कैसे एक्सेल पे फाइल बनानी है, किस तरीके से चीज करनी है, वो सब सीखना होगा। तो पुरी लाइफ में सीखने के दो ही उद्देश्य होते हैं। एक तो आप पूरा जो भी कुछ सीखते हो, उसे संगठित करते चलते हों। दूसरा, एडजेस्टमेंट करते हैं, अनुकूलन करते हैं। जो कुछ सिखा उससे आप अपने आप को वातावरण के अकॉर्डिंग ढलोगे।

अब, अनुकूलन में यहां इन्होंने तीन टर्म बताए। पहला टर्म है “आत्मसातीकरण” जिसे बोलते हैं असिमिलेशन। मैं कहती हूं, आत्मसाथीकरण यानी गले लग जाना, शाहरुख़ ख़ान वाली स्टाइल में। आपका जो पुराना ज्ञान है, उसमें आप नए ज्ञान को बिना किसी चेंज के जोड़ देते हों। बेस्ट एग्जांपल खुद आपके सीटेट में आया हुआ था।

एक बच्चा यह समझता है कि भैया उड़ने वाली जो भी चीज होती है, उसे चिड़िया वो जानता है, उसे किसी ने बताया, घरवालों ने कि चिड़िया। तो इस बच्चे ने क्या किया? अब पहली बार पतंग उड़ते देखी तो इसको लगा हर उड़ने वाली चीज चिड़िया होती है। तो इसने पतंग को भी चिड़िया का दिया, पहले से जो ज्ञान था कि भैया चिड़िया है, ये क्योंकि ये उड़ती है। उसमें नया ज्ञान जोड़ा गया, नया ज्ञान की पतंग उड़ती हुई देखी, उसे भी चिड़िया का दिया। लेकिन कोई चेंज नहीं किया गया, नहीं ये पतंग है ठीक। इसे कहते हैं “आत्मसातीकरण” जब पहले के ज्ञान में नया कुछ जोड़ा जाए और कहीं कोई चेंज ना किया जाए, ऐसे ही गले लगा लिया जाए।

असिमिलेशन, समायोजन क्या सिचुएशन होती है, समायोजन अकोमोडेशन। समायोजन होता है, अकोमोडेशन समायोजन, अकोमोडेशन पुराने में बदलाव करना, पुराने में बदलाव करना, पुराने में समायोजन करना। जगह बनाना आपके घर में, मैं आऊं और मैं कहूं की मैं आपके शहर में हूं.

क्या आपके घर रुकने के लिए कोई होटल नहीं मिल रहा है?”

“बिल्कुल, लिए लिए, तो जो आपका फैला हुआ कमरा है, जिसमें आपने दुनिया भर के तीन कपड़े अपनी ही बेडरूम पर फैला के रखे होते हैं, तुम उन्हें तुरंत समेटोगे, सलीके से लगाओगे और मेरे बैठने लेटने की व्यवस्था करवाओगे। ये क्या है, ये अकोमोडेशन है पुराने में क्या करना चेंज करना, पुराने ज्ञान के साथ नए ज्ञान को जोड़ना, लेकिन पुराने में चेंज करना यानी यहां बच्चा क्या कर रहा है, अच्छा?”

“तो पतंग अभी भी चिड़िया बोल रहा है, लेकिन क्या कर रहा है अच्छा? ये धागे वाली चिड़िया है, तो ये धागे वाली चिड़िया है, अच्छा, ये अलग है अच्छा, धागे वाली चिड़िया है। ये पुराने ज्ञान में चेंज कर रहा है, मतलब चिड़िया को इसको पतंग को धागे वाली चिड़िया बोल दे, ठीक है ना, ए रही बात समझ में?”

“आता है तीसरा चीज, जब बच्चे को किसी ने बताया, किसी बड़े ने बताया, किसी किताब में बच्चे ने देखा कि नहीं, यार, चिड़िया अलग होती है, पतंग अलग होती है, पतंग निर्जीव है, मार जाएगी, फैट जाएगी, बारिश होगी, गल जाएगी, हवा ज्यादा उड़ जाएगी, कोई कटेगा, कट-कट कट कट जाएगी, तब उसकी समझ में आया, तब उसने सही ज्ञान का निर्माण किया।”

सही ज्ञान का निर्माण जब बच्चा करेगा, तो उसे कहते हैं – ‘सामंजस्य धारण’ या ‘संतुलन’ (equilibrium)। ठीक है, तो सबसे पहला टर्म ‘साथीकरण’ (assimilation) जहां बच्चा कोई चेंज नहीं करता, पुराने ज्ञान और नए ज्ञान में फिर आता है। फिर आता है ‘समायोजन’ और ‘अकॉमोडेशन’ जहां बच्चा पुराने ज्ञान में चेंज करता है, लेकिन फिर भी सही ज्ञान और सही नॉलेज नहीं है, उसको अंत में संतुलन होता है। जब बच्चा सही किसान का निर्माण करता है, तो एक तुम बड़ा पूछा जाता है।

जीन पियाजे से आपका स्कीम क्या है? स्कीम क्या है?

सूचनाओं का पैकेट है, आप जीवन भर बहुत सारा ज्ञान ठीक है। नॉलेज अर्जित करोगे, उसे सबका एक ग्रुप कहा जाएगा, सबका पैकेट आपके दिमाग में जो है, इसे कहा जाएगा स्कीम। ठीक है, तो यहां जब बच्चे के दिमाग में सही ज्ञान फिट हो गया है ना की नहीं, पतंग अलग चीज है और चिड़िया अलग चीज है, तो आप कहोगे – ‘बच्चे को सही स्कीम बनाना ए गया’। किन्हीं नहीं, सही स्कीम बनाना ए गया, सही ज्ञान हो गया, सही सूचना हो गई, सही नॉलेज हो गई। ठीक है, यहां तक कोई दिक्कत नहीं होगी। अब समझे, इन्होंने विकास की चार अवस्थाएं बताई पिछले साल। ना, इन्हीं अवस्थाओं में थोड़ा घुमा घुमा के गूगली डाल दिया और बहुत जबरदस्त तरीके से तो इन्होंने कहा कि यह तो शुरुआत में ही बता दिया इन्होंने, कि बच्चा क्या होता है। पूरी लाइव जैसे-जैसे बायोलॉजिकली मेच्योर होता है, ठीक है। वैसे-वैसे उसको अनुभव होते हैं, वैसे वैसे वह कॉन्सेप्ट बनाता है, हर चीज़ को लेकर अपनी एक सोच बनाता है।

तो इन्होंने कहा कि विकास के चार स्टेज बताएं, उसमें सबसे पहली स्टेज का नाम दिया ।

‘सेंसरी-मोटर संवेदी पेशी’, 0 से 2 साल की उम्र में। यहां, यह जो भी ज्ञान प्राप्त करता है, उसे कहते हैं ‘ऑब्जेक्ट परमानेंट’ वस्तु स्थायित्व’।

तो ‘ऑब्जेक्टिव परमानेंट’ क्या सिचुएशन है, वस्तु स्थायित्व क्या चीज है, यह जानता है। ऐसी वस्तु जीवन में है, इसने देखी है। इसका एक खिलौना है, इसने देखा है। आप उसको छुपा दोगे इसे बेड पर वह दिख नहीं रहा है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह खिलौना है ही नहीं। यह जानता है कि खिलौना है, मैंने देखा है। यह चीज दुनिया में उपस्थित है, तो वह चीज वहां से हटा दी जाए तो भी वह उसे उसी जगह पर जहां खिलौना रखा रहता है, वहीं ढूंढेगा। यह देखो, उसके पूर्ण जा रहा है, फिर दूसरी जगह तो ‘ऑब्जेक्ट परमानेंट’ वस्तु स्थायित्व यह जानता है कि यह ऐसा खिलौना है। अगर आप उसे छुपा दोगे बेशक, अभी मेरी नजरों के सामने नहीं है, लेकिन यह चीज होती है तो भैया, इसको ढूंढ लेते हैं, तो इसे कहते हैं ‘दिमाग में ऑब्जेक्ट परमानेंट बन जाएगा’। वस्तु स्थायित्व बन जाएगा, कि ‘मेरा खिलौना यहां रखा रहता है’। तो अगर चादर से ढक गया है, तो वहीं उसी पार्टिकुलर प्लेस पर ढूंढने जाएगा, जहां उसका रखा रहता है खिलौना। फिर उसके आसपास की जगह में घूमेगा।

उसके बाद सेकंड स्टेज आती है –

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था, जिसे हम ‘प्री-ऑपरेशनल स्टेज’ कहते हैं। 2 से 7 साल की उम्र में यह हमारा युग होता है।

बच्चा इस चीज का बच्चा, सिंबल्स का उसे बहुत कुछ करता है, प्रतीक बनाता है। यह कल ही इसे बनाया गया था, कल-परसों में इसने मुझे भेजा, तो मुझे लगा कि यह बेस्ट एग्जांपल है इसी को बताने के लिए। सिंबल्स का उसे करने में माहिर है, मैंने कहा, ‘ये क्या है?’ तो बोले, ‘ये मैंने फसल बनाई, ये इंसान बनाया, स्नेक बनाया। देखो, कितना लॉजिकल है, स्नेक की लंबाई देखो, सबसे ज्यादा है इन चीजों में।’ मैंने पूछा, ‘ये क्या बनाया हुआ था?’ और ‘ये क्या है?’ बोले, ‘ये छोटे-छोटे कैटरपिलर हैं। सिंबल्स का उसे कर रहा है, इसके अकॉर्डिंग कैरेक्टर पिलर के सिंबल बनाए हैं, उसने तुम समझो, तुम्हारी टेंशन हो तो मैं नहीं पता, तुम नहीं जानते। उसको आता है। उसकी नजर में उसने कैटरपिलर बनाए, तुम अंधे हो जो समझ नहीं पाए, ‘कैटरपिलर है, भाई, सिंबल्स का उसे करता है, यह मेरी गाड़ी है, यह मेरी गाड़ी का पहिया है। सिंबल्स किसी भी चीज को, वो अपने अकॉर्डिंग का पहिया है, गोल लग रहा है। हाँ, ये मेरी गाड़ी का ही पहिया है, अभी गाड़ी भी नहीं है, दूर-दूर तक ठीक है। तो ये स्टेज वह होती है जिसमें बच्चा प्रति का माहिर होता है, दिमाग में इमेज बन जाती है।

जैसे कि इसने कुत्ता देखा है, कुत्ते की भौं बहुत सुनेगा। कुत्ता सामने नहीं होगा, फिर भी इसके दिमाग में क्या बन जाएगी? कुत्ते की इमेज बन जाएगी, तुरंत ही कुत्ते की बहुत सुनकर। क्योंकि अब इसकी दिमाग में इमेजिंग होने लगी है चीजों की, इसके दिमाग में चीजों के प्रतीक बैठने लगे हैं, और ये उन चीजों के सिंबल्स को भी करता है। तो कुत्ते की जिसने पहले भी देखा है, दूर भों-बों देखा तो तुरंत इसके दिमाग में कुत्ते की इमेज बनेगी। कौन सी आगे होगी प्री ऑपरेशनल स्टेज होगी, कौन सी है जो प्री ऑपरेशनल, फिर उसके बाद है जीवाद, फिर उसके बाद कौन सी सिचुएशन आती है? ‘जीवाद’ की अनिमेशन की स्टेज आती है। ‘अनिमेशन’ की सिचुएशन है, निर्जीव वस्तुओं को भी संजीव समझेगा, इसको लगेगा कि हर चीज संजीव है।

अपनी गुड़िया को अपनी तरह नहलाएगा, गोलियाँ खाना, खाओ गुलियाँ, नहा लो, गोलियाँ, सो जाओ। ठीक है, और अगर गिर जाता है तो क्या करते हैं? घर वाले, मेरे बच्चों को हमारा छुट्टी मार गई। धरती में मैन बेड, धरती में मैन मम्मी, फैट से वहीं पे मार देती है बच्चे को। लगता है मेरा बदला पूरा ले लिया, अबे निर्जीव है ये चीज, इसको कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन उसको लगेगा, इसलिए मुझे गिराया था, इससे बदला लेना था। निर्जीव वस्तुओं को भी संजीव समझता है। ठीक है की आगे में अपने आप को समझता है, मैं पूरे संसार का सेंटर हूं, मेरे इर्द-गिर्द पूरी दुनिया घूमती है, सूरज चंदा मेरे साथ चलते हैं, जब मैं चलता हूं तो मेरे पीछे-पीछे, मेरे संग-संग चलते हैं। तो इलॉजिकल थिंक करें, कितना गजब का इलॉजिकल थिंक करें आप? यह सोचो, कोई लॉजिक नहीं है इसकी सोचने में। हम बात पूरी दुनिया मेरे एरोस पड़ोस में घूम रही है, यह सोच ही क्या है इलॉजिकल थिंकिंग है। ठीक है, और जीव बाद निर्जीव वस्तुओं को भी संजीव समझ लेता है, यह भी क्या है एक लॉजिकल थिंकिंग का ही वही है, लेकिन यहां समझ विकसित है क्यों, विकसित है क्योंकि आप यह तो देखो ना कि जैसे ही इसने कुत्ते की आवाज़ सुनी तुरंत के तुरंत इसके दिमाग में इमेजिंग हो गई, तुरंत इसने जैसे किसी साइकिल का शब्द सुना तो साइकिल की इमेज बन जाएगी, इसके दिमाग में इमेजिंग होने लगी और सिंबल्स का उसे करता है।

जबरदस्त तरीके से ठीक है, अच्छा! और क्या सिचुएशन होती है? इस आगे, मैं तो देखूंगा केंद्रीय कर्ण की सिचुएशन होती है, सेंट्रलाइजेशन। सेंट्रलाइजेशन क्या है? एक समय में एक वस्तु के केवल एक ही पहलू पर एक ही विशेषता पर ध्यान दे पता है। जैसे यहां कांच देखो, एक दो तीन चार पाँच छह कांच हाथ में ऐसे रखोगे तो कहेगा, ‘कितने गेट हैं?’ एक हाथ में जाएगा तो कहेगा, ‘थोड़े कांचे बिखेर दोगे तो कहेगा, ‘ज्यादा कॉन्ट्रा हैं।’ क्यों? क्योंकि रीजन यह है कि यह फैलाव पर ध्यान दे रहा है, इसने क्वांटिटी पे ध्यान नहीं दिया कि हाथ में मुट्ठी में भी छह ही कांच और यहां पर फैला दिए तो भी छह ही कांच हैं। इसके साथ एक सिचुएशन है कि एक चीज की एक ही विशेषता, एक ही पहलू पर ध्यान दे पता है। इलॉजिकल थिंकर है बेस्ट एग्जांपल। ये है यहां आप थोड़ा कम दे रहे होंगे। ये हमारे युग बाबू का एग्जांपल है। व्हाइट बोर्ड पर लिखा हुआ कि मैंने कहा, ‘क्या कर रहे हो?’ मैंने वीडियो कॉल करी। यहां मैं भी देख सकती थी। मैंने अपने आप को कटवाया है, ‘की भाई, बताओ क्या कर रहे हो?’ बोले, ‘मैं नहीं है ना, वो काउंटिंग लिख रहा हूं।’ कहां तक की लिख रहे हो? ‘1 2= 20 की तो देखिए, वैन तू ट्वेंटी, और तू नहीं बनाया है, 1 2 = 20 बनाया है।’ ए रही है बात, समझ में अपनी अलग सोच है, अपने अलग सिंबल्स हैं, अपने अलग प्रतीक हैं, और सेंट्रलाइजेशन है। तू लिखने का यही तरीका जानता है क्योंकि काउंटिंग सिख रहा है, तो एक समय में एक वस्तु के केवल एक ही पहलू पर ध्यान दे पता है। इलॉजिकल थिंकर है इस समय पे बच्चा लॉजिक नहीं लगाएगा अब आती है।

मूर्ति संक्रियात्मक अवस्था यह भी मेरे घर का एक बच्चा है, कंक्रीट ऑपरेशनल स्टेज 7 से 11 साल का बच्चा।

यहां समझदारी आने लगेगी। सामने रखी हुई चीजों को वह चिंतन करेगा, उन पर सोच पाएगा, लॉजिकल चिंतन करेगा। मैंने क्यों बोला है? क्योंकि कारण है इस आगे में, मूर्ति संक्रियात्मक, यानी कंक्रीट ऑपरेशनल स्टेज, जो है सात से 11 की उसमें रिवर्सिबिलिटी का गुण पैदा हो जाता है। यहां 3 + 2 = 5 होते हैं, आपका 5 – 3 तो भी कहेगा, ‘तू होते हैं,’ आप कहो, ‘आ.’ 5 – 2 तो कहेगा, ‘त्रिहोते हैं,’ बोले उल्टा-पुल्टा करना जानता है, आप इससे रिवर्सिबिलिटी पूछोगे, आप इससे रिवर्सिबिलिटी इस आगे में पूछो, मूर्ति संक्रियात्मक में तो यह आपको बता देगा कि आप इससे इस आगे में पूछो, आपकी स्कूल से आपके घर की दूरी कितनी है, बताया 1 किमी, और आप पूछेंगे घर से स्कूल की दूरी तो तुरंत बताया वो भी 1 किलोमीटर होगी। जब स्कूल से घर एक किलोमीटर दूर है तो घर से स्कूल भी तो 1 किमी दूर ही होगा, तो यहां रिवर्सिबिलिटी जानता है। उससे पहले सिर्फ वही समझा दिया जाएगा जिसको दिमाग में ज्यादा लगा नहीं पाएगा। उतने बारीक पहलुओं पर समझ नहीं होती है पूर्व संक्रियात्मक प्री-ऑपरेशनल में, लेकिन यहां रिवर्सिबिलिटी कर पाएगा, तो वहां इरिवर्सिबिलिटी रहेगी। वहां पूछेंगे लोग, ‘आपके स्कूल से आपका घर एक किलोमीटर दूर है तो आपके घर से स्कूल तो दिमाग नहीं लगेगा कि वो भी एक किलोमीटर दूर होगा, दूरी भर ऊँचाई और क्रमबद्ध तरीके से, कि भाई, ये इसके बाद ये आएगा, ये सीरियल रहेगा, ये क्रम रहेगा, उसको करने की योग्यता होती है क्योंकि समझ पैदा हो चुकी है, अच्छी सी लॉजिकल थिंकिंग पैदा हो चुकी है, तार्किक चिंतन कर रहा है, तो पलटा भी कारण रिवर्सिबिलिटी भी कर पाएगा।

और चीजों को क्रम में भी लगा पाएगा, उनके आकर, उनकी लंबाई, उनकी चौड़ाई हर एक चीज के हिसाब से संरक्षण कर पाएगा। अब बात आती है, बच्चे कहते हैं ‘सर्वेक्षण कंजर्वेशन होता है।’ क्या है कंजर्वेशन होता है? की अगर आप किसी चीज की शॉप और प्राइस में चेंज कर देते तो भी क्वांटिटी से रहेगी।

इस आगे का बच्चा जिसे आप कहते हो कंक्रीट ऑपरेशन, इस आगे का बच्चा इस बात को बहुत अच्छी तरीके से जानता है कि अगर किसी चीज के शॉप एंड साइज में चेंज कर दोगे भी तो भी क्वांटिटी से रहेगी। रोटी की लोई बनाती है मम्मी, ‘आप किसी छोटे बच्चे से दो से सात साल की उम्र के बच्चे से पूछो, प्री-ऑपरेशनल स्टेज वाले बच्चे से पूछो की ये वाला ये बड़ा है या ये बड़ा है, तो बिल्ली हुई रोटी को बड़ी बता देगा क्योंकि सेंट्रलाइजेशन केंद्रीयता, एक समय में केवल एक ही पहलू पर ध्यान दे पता है। यह देखा फैली हुई है, ये बड़ी है भाई, ये जानता है कि भैया इसी से तो ये बनी है, तो जितना इसका शॉप है उतना ही इसका, ‘अरे भैया, क्वांटिटी से रहेगी।’ इसको दोबारा से यू लड्डू बनके वापस इधर ही दल दो, ये होता है संरक्षण की किसी चीज के शॉप और साइज में चेंज करो तो भी क्वांटिटी से बनी रहती है और आप उसको लास्ट दिन चीजों को ला सकते हो, उनको वापस ला भी सकते हो उसी स्टेज में। संरक्षण कंजर्वेशन एकदम

पिछले साल ज्यादा देखने को मिला क्वेश्चन में क्या था, सकर्मक परिणाम ट्रांसिटिव इंटरफ्रेंस। ट्रांसलेट इन फॉरेन सकर्मक परिणाम या सकर्मक चिंतन ये भी मूर्ति संक्रियात्मक कंक्रीट ऑपरेशनल स्टेज की ही विशेषता होती है। सकर्मक परिणाम क्या था कुछ नहीं था, सिर्फ आपकी इतनी सी अंदरस्टैंडिंग थी कि एक आइटम एक्स है वह ए से रिलेट करता है, वही आइटम स से रिलेट करता है, तो बच्चा इतना लॉजिक लगा पाए की भैया इसका मतलब एक्स आइटम स से रिलेट करता है, यह आपस में रिलेट करते हैं, यह बात बच्चा समझ पाए तो इसे कहेंगे ‘ट्रांसिटिव इंफरेंस’। सकर्मक परिणाम और यह तभी पैदा हो सकता है जब बच्चे के अंदर kendriyata ना हो, सेंट्रलाइजेशन ना हो, डायवर्स थिंकिंग हो, यानी विकेंद्रीकरण हो।

विकेंद्रीकरण हो एक पहलू को ना देखें तभी समझ पाएगा की अच्छा एक्स से ए जुड़ा हुआ है और ए से स का रिलेशन है, तो एक्स और स के बीच में भी रिलेशन है। संबंध बनाना समझ जाता है, क्या सिख जाता है संबंध बनाना लग जाता है, तो मूर्ति संक्रियात्मक अवस्था में बच्चा संरक्षण सिखाता है कंजर्वेशन की शॉप और साइज में चेंज कर दो तो भी क्वांटिटी वही बनी रहेगी। संबंध सकर्मक परिणाम ट्रांसिटिव इंफोरेंस सिखाता है कि इसका इससे रिलेशन, इसका इससे रिलेशन तो हान भैया, इनका इनसे यह रिलेशन है, संबंध सिखाता है विकेंद्रीकरण सिखाता है पलटना सिखाता है चीजों को की यह चीज रिवर्सिबिलिटी भी हो सकती है अगर 3 + 2 = 5 होते हैं, 3 + 2 = होते हैं, तो 5 – 3 = 2 हो जाएगा, यह रिवर्सिबिलिटी जानता है ठीक है। क्योंकि समझ पैदा होगी, यह लॉजिकल हो गया।

लास्ट स्टेज जो होती है, जहां जाकर बच्चा बहुत समझदार हो जाता है।

अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था / फॉर्मल ऑपरेशनल स्थिति (Formal Operational Stage): 11 वर्ष के बाद

फॉर्मल ऑपरेशनल स्टेज इसे अंतर्ज्ञान की अवस्था कहते हैं, मतलब अलग लेवल पर ज्ञान चला गया, अब ज्यादा समझदार हो गया है, बहुत हायर लेवल का उच्च चिंतन कर पाएगा जो चीज सामने नहीं है, एब्स्ट्रेक्ट है, अमूर्त हैं, उनका भी चिंतन कर पाएगा और डिडक्टिव रीजनिंग कर पाएगा, ‘niggamaatmak tarkna’ कर पाएगा, निगमनात्मक टरकाना यानी नियमों के ऊपर भी तर्क कर पाएगा, और नियमों के ऊपर तर्क कर पाने की हैसियत तभी आती है जब हायर लेवल पर आपकी लॉजिकल थिंकिंग पैदा हो गई है।

घर में नियम बना हुआ है, आप तर्क करो कि साबित करिए इस बात से क्या फायदा होता है। मम्मी ने है बगैर खाना नहीं, आपने बगैर खाना क्यों नहीं मिला, नियमों के ऊपर तर्क करने वाली सिचुएशन की खाना खाकर भी तो नहाया जा सकता है, तो ये वाली सिचुएशन जो है, फॉर्मल ऑपरेशनल स्टेज जो होगी, हायर लेवल पे चिंतन करेगा, जो चीज सामने नहीं है उनके बारे में भी सोचेगा, बहुत चरम लेवल पे अपनी कल्पनाशीलता होगी, इमेजिनेशन होगी, इस पूरे सिद्धांत के आलोचना एक बेसिस पे की जा सकती है। बस पियाजे से आप कहते हैं कि सीक्वेंस हमेशा चारों चरणों का यही रहता है और इन्हीं चारों चरणों में यही विशेषता है, तो उन्होंने कहा ये जो क्रम है, वो चेंज नहीं हो सकता, लेकिन हम यह कहते हैं और आप भी जानते हो आज के समय में अगर बच्चे को अच्छा वातावरण मिले तो बच्चा अपने कैलिबर से भी ज्यादा सिख जाएगा और हो सकता है की एक बच्चे के अंदर है।

अगर एक बच्चा कंक्रीट ऑपरेशनल स्टेज में है, तो कंक्रीट ऑपरेशनल स्टेज में उसके अंदर आप 9 साल के अंदर ही फॉर्मल ऑपरेशनल स्टेज की अवस्था देख लो। लेकिन ये इस चीज पर डिपेंड करेगा कि वह किस तरीके के वातावरण में पल बढ़ रहा है। इसके अलावा भी, पियाज साहब की दो चीजें समझ लें। पियाजे साहब ने कहा विचार पहले भाषा, बाद में उन्होंने कहा विचार पहले होता है। बच्चा जब तक बोलना नहीं सीखता तब तक भी बच्चा अपनी माँ को पहचानता है, जानता है यह मेरी माँ है, ये मूंछ वाला आदमी कौन है, भाई, ये बेकार आदमी है, इसके साथ नहीं देखता है, ऊपर, अरे नहीं, यार, इसको टच करने में फुल माँग वाला नहीं ए रहा, सॉफ्ट वाला रोने लगता है, विचार है उसमें, पागल नहीं है, वो बोलना नहीं जान रहा, तो क्या है विचार नहीं है, तो पियाजे से आप कहते हैं भैया, विचार पहले भाषा बाद में ठीक है, ये खुद से बातचीत को इकोसेंट्रीज्म कहते हैं, जिसे वाइगोत्सकी साहब कहते हैं, ना, बच्चा खुद से बातचीत करता है, बहुत जबरदस्त चीज है, खुद को रेगुलेट कर रहा है, ये क्या कहते हैं, बच्चे जो बातचीत कर बेकार है, फालतू बड़बड़ा रहा है, बड़बोला बन कर रहा है, एक सेंटर्स इसमें है, ये हम केंद्रित है, की अपने आप कोई सेंटर में रखता है, तो बच्चा जो खुद से बात कर रहा है, उसे पास साहब एकॉसेंट्रीज्म कहते हैं।

अर्थ हैं, मानते हैं, बोलते हैं, इसका कोई उसे नहीं लिए भैया जी, क्वेश्चन लगे पहला क्वेश्चन यह है, जीन पियाजे के सिद्धांत में ‘क्रमबद्धता’ किस रेलीवेंस में आया है, ‘क्रमबद्धता सीरिएशन’ क्रमबद्धता बताया था, ‘क्रमबद्धता कब आएगी’ बताएंगे क्रमबद्धता उसे आगे में पैदा हो जाती है। बच्चे के अंदर जब बच्चा ‘कंक्रीट ऑपरेशनल स्टेज’ मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में होता है, तो चीजों को सीक्वेंस में लगाने लगता है। उनके आकार प्रकार रंग रूप के हिसाब से एक आयाम देने लगता है। तो ‘क्रमबद्धता’ किस संदर्भ में वस्तुओं को किसी एक आयाम जैसे लंबाई पर क्रम दे देना डेफिनेटली ऐसा थोड़ी ना है कि दूसरों के प्रोस्पेक्टिव को समझने की योग्यता को आप ‘क्रिएशन’ बोल देते हो। यह सीरियल रूप को आप सिविलाइजेशन बोल देते हो, यह स्थान जैसे अपने विद्यालय का बच्चा माइंड मैप बना पाए या मैप बना पाए तो उसे आप ‘सीरियलाइजेशन’ कहोगे नहीं कहोगे तो चीज कट जाएगी। नेक्स्ट 5 वर्षीय 5 साल की नसीमा है, 5 साल से तो पहली बात तो यहीं क्लियर हो गया, उसको लगता है चिकनी मिट्टी के गोले को अगर दबाकर एक सांप का रूप बना देंगे तो चिकनी मिट्टी बढ़ जाएगी, वही युग वाला मामला है। इस बच्ची का भी चिकनी मिट्टी बढ़ जाएगी, तो जीन पियाजे के अनुसार इसकी सोच जो है क्योंकि चल रही है पूर्व संक्रियात्मक प्री-ऑपरेशनल स्टेज में, तो उसकी इस सोच के पीछे कौन सा तर्क है कि मिट्टी के गोले को सांप का रूप दे देंगे।

तो मिट्टी बढ़ जाएगी, एक ही पहलू देख का रही है फैलाव का, तो क्या है केवल ‘केन्द्रीयता’ है भैया, यहां तक तो पहुंचेगी नहीं। ‘सकर्मक परिणाम’ तक तो पहुंचेगी ही नहीं, क्योंकि वो तो नेक्स्ट स्टेज है निगमनात्मक तर्क। अरे भैया, यह तो सबसे चार लेवल है, जीव वाद लेकिन यहां उसने यह थोड़ी ना कहा कि जिंदा हो गया है वो सांप, यहां तो यह है कि दावा दिया लंबा हो गया, तो सांप बड़ा भैया, मिट्टी बढ़ गई है तो एक ही पहलू देख का रही है ‘केन्द्रीयता’।

जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की किस अवस्था में बच्चा समझ लेता है कि प्रति का इस्तेमाल वस्तुओं को प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जा सकता है? अगर बच्चे के सामने साइकिल नहीं है तो भी साइकिल शब्द सुनकर उसके दिमाग में एक इमेज बन जाएगी। कहां ‘सिंबल्स’ का भर-भर के उसे करता है कि अपने आप समझो ना, मौसी जी, ये कैटरपिलर हैं कौन सी स्टेज में? साइकिल सामने नहीं है, लेकिन इमेजिंग रहती है, कुत्ते की भौंहों से ही। जैसे ही बहुत सुनी तुरंत दिमाग में कुत्ते की इमेज कौन सी स्टेज है? पूर्व संक्रियात्मक अवस्था.

ही को तीन पेंसिलें दिखाई जाती हैं। पेंसिल ‘ख’ से बड़ी है और ‘जी’ से बड़ी है, तो रूही इस कंक्लूजन पर पहुंची कि ‘जी’ सबसे बड़ी है, फिर ‘ख’ है, और फिर ‘जी’ है। तो जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की किस विशेषता को बताया यहां पर आप में से कौन ने जिन्होंने लास्ट ईयर दिया होगा उन्होंने यह गलती कारी होगी कि उन्होंने ‘serialization’ लगाया होगा। बल्कि यहां वह संबंध रेलेट कर रही है कि ये ‘जी’ इससे बड़ी है, इससे छोटी है क्योंकि क्वेश्चन सिर्फ इतना नहीं कहता गया था कि क्रम में लगा दो पेंसिलों को, और उसने अपने हिसाब से देखा और फिर क्रम में लगाया। तो आप सीरियल बोल सकते हैं यहां रिलेशन मेंटेन करने वाला क्वेश्चन था कि क्या ‘ख’ से बड़ी है, ‘जी’ से बड़ी है, तो बताओ, तो कंक्लूजन पर पहुंचना था। तो संबंध बनाना सकर्मक विचार ट्रांसिटिव थॉट की बात हो रही थी, ठीक है।

जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत के अनुसार, अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था में बच्चा निम्नलिखित कार्यों को कर पाता है:

  1. हाइपोथेटिकल सोच: बच्चा इस स्थिति में हाइपोथेटिकल सोच सकता है, जिससे उसकी दृष्टिकोण बनाने में मदद होती है और वह विभिन्न संभावनाओं को समझ सकता है.
  2. प्रज्ञा: बच्चा इस स्थिति में अधिक प्रज्ञा विकसित कर सकता है, जिससे उसे अधिक समझदार और विवेचनात्मक दृष्टिकोण मिलता है.
  3. हायर लेवल की चिंतन: बच्चा इस स्थिति में उच्च स्तर की चिंतन क्षमता विकसित कर सकता है, जिससे उसे अभिव्यक्ति के विभिन्न पहलुओं को विचार करने की क्षमता होती है.
  4. अंतर्ज्ञान वाली स्टेज: बच्चा इस स्थिति में अंतरज्ञान विकसित कर सकता है, जिससे उसकी जानकारी और समझ में वृद्धि होती है.
  5. फॉर्मल ऑपरेशन: बच्चा इस स्थिति में विभिन्न तरीकों से समस्याएं हल करने और अभिव्यक्ति करने के लिए फॉर्मल ऑपरेशन सीखता है.

इस सिद्धांत के माध्यम से बच्चा अपनी बुद्धि की विकास की यात्रा में अग्रसर होता है और उम्मीद है कि इससे आपको किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी।

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