वाइगोत्सकी (1896-1934) का सिद्धांत है, जिसे कहा जाता है, “सामाजिक सांस्कृतिक विकास का सिद्धांत” (Socio-Cultural Theory of Development)। बच्चा कोऑपरेशन में करता है, वह कल को अकेला कर पाएगा। इस एक बात में ही, इस वैज्ञानिक की पुरी की पुरी फिलासफी है। तीन बातें समझनी हैं:
पहली इंपॉर्टेंट बात है कि साहब के सिद्धांत का नाम “Socio-Cultural Theory of Development” है, जिसे इन शॉर्ट सामाजिक सांस्कृतिक विकास का सिद्धांत भी कहा जाता है। दूसरी बात यह है कि बच्चा समाज में इंटरेक्शन करता है, बातचीत करता है और अंत क्रिया करता है, जिससे वह समाज से सीखता है।
पहली बात है कि बच्चा समाज से इंटरेक्शन करता है, अंत क्रिया करता है और फिर सिखाता है, यानी बच्चे के सीखने में समाज का बहुत बड़ा रोल है। विकास के अंदर, समाज और संस्कृति दोनों का बहुत बड़ा रोल है। आपका डेवलपमेंट कैसा होगा, किस तरीके के वातावरण में आप रहेंगे, किस तरीके के समाज का आप हिस्सा रहेंगे, वैसा ही आपका डेवलपमेंट होगा। यह भी है कि पहलवानों के घर में छोड़ डन में आपको पहलवानों का मोहल्ला, पहलवानों का ही गांव, पहलवानों का शहर – यकीन मानो, हर बच्चा पहलवान की तरह डायट लेता होगा, और एकदम पहलवानों जैसी सोच और समझ होगी। उसकी सोच और समझ पर समाज और संस्कृति का बड़ा असर पड़ता है। यह वाइगोत्सकी साहब ने कहा है। उसके बाद इन्होंने तीन कॉन्सेप्ट दिए, तीन कीवर्ड जो आते हैं। पहली बात तो यह है कि इन्होंने कहा है कि बच्चे के सीखने में समाज और संस्कृति दोनों का बहुत बड़ा रोल है।
दूसरी इंपॉर्टेंट बात यह है कि व्यक्ति ने तीन कीवर्ड दिए हैं जो एग्जाम में रिपीटेडली आते हैं। यह कीवर्ड वह हैं जिन्हें व्याख्यानकार एग्जाम में बार-बार बताते हैं। पहला कीवर्ड है कि बच्चे को नहीं समाज में किन से सिखाता है, MKO से सिखाता है। इसमें MKO मोडल के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे बच्चा सीखता है। दूसरा कीवर्ड है “फोल्डिंग”। इसमें यह बताया गया है कि बच्चे को कैसे सपोर्ट करना चाहिए ताकि उसका डेवलपमेंट हो सके। तीसरा कीवर्ड है “बांस की बालियां” जिससे दिखाया गया है कि सपोर्ट का महत्व हमेशा बना रहता है, जैसे कि बांस की बालियां घर में आज भी दिखाई देती हैं।
कितने प्यारे-प्यारे कीवर्ड दिए, पहला कहा कि बच्चे को ना समाज में किन से सिखाता है, एम के ओ से सिखाता है, के वह कौन एम से, मोर के से नॉलेज आदर जो ज्यादा जानकर होते हैं, बच्चों से यानी बच्चे से बड़े बच्चे का टीचर, बच्चे के बड़े भाई बहन, बच्चे के मम्मी, बच्चे के पापा, जो भी नॉलेज है, बच्चे से ज्यादा, उन सबसे सिखाता है। एम के ओ नाम दिया, यह एम क्यों सीखते, कैसे हैं, ये एम के हो ना सपोर्ट देते हैं, बच्चे को। इसको क्या टर्म दिया इन्होंने, इसके फोल्डिंग क्या कहा, इसके फोल्डिंग क्या ढांचा, मचान, पहाड़, अरे घर बनाते हो बलिया नहीं लगाते हो, की पहली बार में दीवार लगा देते हो, लेंटर लगाते ही क्या करते हो, लांटर डाला है, उसके बाद बांस की बालियां लगा दी गई है, भैया, तो वह बांस की बालियां के घर में आज भी दिख रही हैं, नहीं सपोर्ट था।
थोड़े समय तक के लिए, तब तक ऊपर लेंटर पर पानी डालता रहता था। जब लगा पक्का हो गया है, तब वो बलिया हटके दीवारें चिंदी गई थीं। तो कहा, “ये जितने भी एम के होते हैं ना, ये एस के फोल्डिंग देते हैं। इसके फोल्डिंग का मतलब फाड़ देते हैं, मकान देते हैं, ढांचे की तरह कम करते हैं, यानी टेंपरेरी मदद देते हैं। यह पिक्चर देखो भाई, इस पिक्चर में पापा ने अपनी प्यारी सी गुड़िया को चलना सिखाया, साइकिल के ऊपर बैठ के साइकिल चलाना सिखाया। तो यह टेंपरेरी हेल्प थी। पीछे से पापा ने थोड़ा-थोड़ा पकड़ा, पीछे ही रहना छोड़ना तो नहीं, हान हान बेटा, “मैं पीछे ही हूं, चलो चलो, आगे बढ़ो बच्चा”। चलता गया। फिर क्या होता है, एक समय आता है, सबने हमने ऐसे ही साइकिल सीखिए, यार एक समय ऐसा आता है, पीछे से पापा, मम्मी, या भैया-दीदी, जो भी सिखा रहे, द वह गायब हो जाते हैं, और हम अपने आप बैलेंस बनाना सिख जाते हैं। तो यही बात थी, शुरुआत में वाइगोत्सकी साहब ने आज जो चीज बच्चा कोऑपरेशन में कर रहा है, वो कल को अकेला करेगा। मस्त साइकिल चला रही है, पीछे पापा ने छोड़ दिया तो एम के वो इस बच्ची की लाइफ के ये इसके पापा हैं, ठीक क्या थी।
इन्होंने टेंपरेरी हेल्प, दूसरा टर्म उनका इंपॉर्टेंट, तीसरा इंपॉर्टेंट टर्म जिससे क्वेश्चन आते हैं, एसपीडी, एसपीडी किया है भाई से प्रॉक्सिमल डेवलपमेंट, वो एरिया जहां तक बच्चे को पहुंचा जा सकता है, सिंपल बात है जॉन ऑफ प्रॉक्सिमल डेवलपमेंट को कहा जाता है निकटवर्ती या समीप का विकास का क्षेत्र, यानी जहां तक बच्चे का दायरा पहुंचा जा सकता है। देखो ये तो है आपका वास्तविक डेवलपमेंट, यह हो अंदर आप अकेले ठीक, यह आप बिना किसी की मदद के सीखते, जब आप बिना किसी एम के हो की मदद से सीखते, साइकिल चलाना तो चार बार अंगूठे तोड़ते, 10 बार खुद गिरते, तो यह आपका वास्तविक डेवलपमेंट था, लेकिन संभावित विकास क्षेत्र, इसके बाहर एक और आउटर एरिया होता है, एक और आउटर एरिया होता है जहां तक आपका डेवलपमेंट हो सकता है। ये तो है रियल डेवलपमेंट एरिया, जहां तक आप खुद बिना किसी की मदद के स्वयं अपने आप, जहां तक आप पहुंच सकते हो, लेकिन हर जगह आप अकेले थोड़ी ना पहुंच सकते हो। अगर ऐसा संभव होता तो श्री कृष्ण की जरूरत ही क्यों पड़ती है, अर्जुन को तो स्वयं अपने आप हर जगह नहीं पहुंच सकते हो, वास्तविक डेवलपमेंट का एरिया तो उतना ही है जितना एक इंसान के अंदर समर्थ है, बिना किसी की मदद के, और वो भी पूरी नहीं जानता, लेकिन, वहां तक पहुंच जाना आउटर एरिया में, जहां तक एक बच्चे के अंदर कैलिबर है, उसके अंदर हुनर है। वहां तक वह अपने टीचर की मदद से पहुंच जाता है। यहां आपकी सीट में अपने आप मेहनत करने पर आते हैं। मार्क्स आपको मिल गए, प्रॉब्लम आती थी। आपको इन्हीं सिद्धांतों में तो आप कर सकते हैं, 130 नंबर आप ला सकते हैं सिद्धांतों के, ज्यादा क्वेश्चन आते हैं और वो भी बड़ा, लॉजिकल एप्रोच के साथ क्वेश्चन, अंडरस्टैंडिंग बेस पूछता है सीटेट तो वहां तक, 130 नंबर आने तक आपका संभावित विकास का क्षेत्र था। यहां तक आपका एक्सपेक्टेड डेवलपमेंट हो सकता है, की 130 के बाद आपका नहीं है भैया। हर बच्चे के अंदर इंडिविजुअल डिफरेंस है, कोई 130 तक पहुंच सकता है, कोई 150 में से 50 ला सकता है, तो रियल डेवलपमेंट वह जहां तक बच्चा खुद कर सकता है।
और एक्सपेक्टेड डेवलपमेंट का जोन वो जहां तक हर एक बच्चे के अंदर इंडिविजुअल अपनी काबिलियत है, लेकिन अब उसको क्या मिल गया रास्ते में जितनी तक पहुंचने की उसकी काबिलियत थी उसके लिए उसको कौन मिल गया। उसको मिल गया मो मोर नॉलेज, आदर टीचर मिल गया भाई, मिल गई बहन, मिल गई नोट्स दे दी इसके फोल्डिंग दे दी बच्चे ने उसको पढ़ा, समझा और वो यहां 80 से 130 पहुंच पाया तो ये 80 से 130 के बीच के गैप को कहते हैं एसपीडी। समीपस्थ विकास का क्षेत्र, निकटवर्ती विकास का क्षेत्र ड्रोन ऑफ प्रॉक्सिमल डेवलपमेंट जहां तक खुद कर सकता था, वह और जहां तक उसके अंदर कैलिबर था एक्सपेक्टेड लेवल था जितना उसके सुंदर योग्यता थी, वहां तक पहुंचने के बीच में, किसकी भी मदद से पहुंचा कब जो बीच का डिफरेंस है ना गैप जो उसने तय किया उसे कहा जाता है स पद। तो क्लियर हो गया तीन इंपॉर्टेंट बातें अभी दो ही क्लियर हुई हैं। पहली बात तो ये की कहा समाज और संस्कृति को इंपॉर्टेंट। दूसरी बात ये है की तीन इंपॉर्टेंट टर्म दिए, एम के उसके फोल्डिंग और एसपीडी। तीसरी बात अभी बाकी है।
भाई बने रहना तो वास्तविक विकास जहां तक बच्चा खुद कर सकता था सीटेट में 80 नंबर खुद से ला सकता है। खूब ए रहे द उसके कोई दिक्कत नहीं है पर परेशान था क्योंकि 90 वाला पास है भाई।
संभावित विकास कैलिबर इतना है बुद्धि इतनी समझ है उसके अंदर की 130 नंबर ला सकता था, तो एम के ओ की मदद मिले तो 130 ला सकता था। तो 80 से 130 के बीच का ये जो डिफरेंस है, जो एम के ओ की मदद से पूरा करेगा, वो स पद कहलाएगा समीपस्थ विकास का क्षेत्र। निकटवर्ती विकास का क्षेत्र जोन ऑफ़ प्रॉक्सिमल डेवलपमेंट कहलाएगा। ठीक भाई, अब आती है तीसरी बात भाषा के बारे में भी पूछ लेते हैं। वाइगोत्सकी साहब के लिए भाषा पर क्या सोचते हैं, वाइगोत्सकी के साथ बड़ा इजी बात कहते हैं। कहते हैं भैया, पहले आती है भाषा, फिर आते हैं विचार पिया जैसा आप इसके बिल्कुल के बारे में कहीं की बच्चा जो बचपन में अपने आप से बातें करता है, ना खेलता रहता है यूं यूं करता रहता है, अपने आप में बातें करता है, यह निज भाषण है, आंतरिक वाक है, प्राइवेट स्पीच है, ये जो बच्चा खुद से बातचीत कर रहा है ना, यह खुद को गाइड कर रहा है। अब मैं नहाउंगा, गुइया को नहाउंगा, गुइया के संग खेलूंगा, गुइया को सुलाउंगा। ये गाइड कर रहा है खुद को, क्योंकि इसकी मम्मी इसको ऐसी करती थी। तो बोले ये जो बच्चा बात करता है ना, प्यारे साहब, कहते हैं, पागल बनाए कोई कम की चीज थोड़ी ना है, ये जो बच्चा बात करता है, वाइगोत्सकी साहब कहते हैं, बहुत जबरदस्त चीज है, यह जो बच्चा खुद से बात कर रहा है ना, यह खुद को गाइड कर रहा है, कम करने के लिए निर्देशित कर रहा है। यह सटीक आगे इट इसे लाइन आएंगे, ये तीन बातें याद रखनी हैं।
और वाइगोत्सकी साहब आपके यहीं खत्म होते हैं, तो वही हमेशा की तरह पंच क्वेश्चन लगाएंगे। फटाफट लगे मेरे साथ, लव बाय गॉड्स की साहब के सिद्धांत के अकॉर्डिंग हमारी संज्ञानात्मक संरचना यानी हमारी जो ज्ञान की नॉलेज की जो स्ट्रक्चर है और साथ ही साथ आपकी नॉलेज की प्रक्रिया में जो चेंज आता है, वो कैसे आता है। आपका जो नॉलेज का स्ट्रक्चर हो या नॉलेज के आपके सोचने के तरीके में या आपकी सूचनाओं में या इनफॉरमेशन में जो चेंज आते हैं, वो किसकी वजह से आते हैं, पुरस्कार की बात नहीं कारी भैया, स्किनर साफ करते हैं। सांस्कृतिक उपकरण की बात की है, बिल्कुल संस्कृति कल्चर को इंपॉर्टेंट मानते हैं। लगाओ भैया, फैट से, वाइगोत्सकी साहब के अनुसार, इनमें से कौन सा फैक्टर संज्ञानात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है? बच्चे के मेंटल संज्ञानात्मक का मतलब होता है मेंटल ज्ञान कहां से मिलता है यह कम करता है। बेटा तभी मिलता है, तो मेंटल डेवलपमेंट में हैंडराइटिंग बहुत बुरी है, तुम तो पहले से ही जानते हो यार। तो बच्चे के मेंटल डेवलपमेंट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता कौन सी चीज? भाषा मैच्योरिटी ऑर्गेनाइजेशन बैलेंस भाषा क्योंकि बच्चा भाषा बोलना सिखाता है और उससे इंटरेक्ट करता है, सोसाइटी से फिर सिखाता है फिर विचार आते हैं, यह वाली कई इन्होंने नेक्स्ट क्वेश्चन। बालिका खुद से बात कर रही है, ठीक है स्वयं से बात कर रही है बच्ची खुद से बात कर रही है और कुछ सहायता द्वारा अच्छा-अच्छा, सॉरी सॉरी बात नहीं कर रही भाई, बालिका खुद से क्या कर सकती है और उसको कोई मदद मिल जाए।
तो वह क्या कर सकती है? इसके बीच के अंतर को आपके वाइगोत्सकी साहब क्या कहते हैं? इसके बीच के अंतर को जो वह खुद कर सकती थी, अकेले और अगर कोई बड़ा कर दे तो उसके बीच का अंतर एक तो बच्चा बच्चा इधर ही करेगा भाई, किसी बड़े ने गाइड कर दिया तो थोड़ा सा मामला थोड़ा डिफरेंट तो दिखेगा, तो इसके बीच के डिफरेंस को क्या कहते हैं? वाइगोत्सकी साहब बिल्कुल “स पद समीपस्थ विकास का क्षेत्र” (Zone of Proximal Development – ZPD) जोन ऑफ़ प्रॉक्सिमल डेवलपमेंट कहते हैं।
पारस्परिक अध्ययन इस इन शॉर्ट रिसिप्रोकल टीचिंग बोलते हैं बता देती हूं आपको रिसिप्रोकल रिसिप्रोकल टीचिंग रिसिप्रोकल टीचिंग पारस्परिक अध्ययन पारस्परिक अध्ययन की शिक्षा शास्त्री प्रणाली किस पर डिपेंड करती है सिंपल सी बात कारी पारस्परिक अध्ययन यानी रिसिप्रोकल टीचिंग जिसमें बच्चे आपस में ही इंटरेक्शन करते हैं क्लास रूम में एक टीचर की तरीके से दूसरे बच्चे से क्वेश्चन पूछते हैं तो बच्चे आपस में ही टीचर और स्टूडेंट की तरह इंटरेक्शन कर रहे हैं पारस्परिक अध्यापक है। रिसिप्रोकल टीचिंग है किस मैटर पर डिपेंड कर रही है भाई? जिस समाज और संस्कृति में बैठ के जिन लोगों के साथ में बैठा है उनके साथ ही क्या कर रहा है, इंटरेक्शन कर रहे हैं, अंत क्रिया कर रहा है, तो सामाजिक सांस्कृतिक एप्रोच पर कम कर रही है।